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ज्येष्ठाङ्गबाहुहृत्कण्ठकटिपादनिवासिनीम् ॥७॥
ह्रीं श्रीं क्लीं परापरे त्रिपुरे सर्वमीप्सितं साधय स्वाहा॥
॥ इति श्रीत्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Darshans and Jagratas are pivotal in fostering a sense of community and spiritual solidarity amongst devotees. Through these functions, the collective Electricity and devotion are palpable, as members interact in a variety of types of worship and celebration.
ह्रीं ह स क ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं
चतुराज्ञाकोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् ॥१२॥
पुष्पाधिवास विधि – प्राण प्रतिष्ठा विधि
ఓం శ్రీం హ్రీం క్లీం ఐం సౌ: ఓం హ్రీం శ్రీం క ఎ ఐ ల హ్రీం హ స క హ ల హ్రీం స క ల హ్రీం సౌ: ఐం క్లీం హ్రీం శ్రీం
In the pursuit of spiritual enlightenment, the journey starts Using the awakening of spiritual consciousness. This initial awakening is crucial for aspirants that are in the onset in their route, guiding them to acknowledge the divine consciousness that permeates all beings.
देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि
अकचादिटतोन्नद्धपयशाक्षरवर्गिणीम् ।
श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥
read more इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।
॥ अथ त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः ॥